Saturday, February 27, 2016

ये तजरबा है कि अपनों ने हमें जख्म दिया

हम तो हर मौसम में गुनाह किया करते हैं
जिस्म की कैद से अश्कों को रिहा करते हैं

अपनी आजादी हमें जां से अधिक प्यारी है
इसलिए तो हम भटकते हुए जिया करते हैं


ये तजरबा है कि अपनों ने हमें जख्म दिया
अब तो तन्हाई में ये दर्द सहा करते हैं

रात होती है तो तुम याद बहुत आती हो
तेरे ही गम में हर रात जगा करते हैं

खुशी छा जाती है नजरों पे कफन बनकर

इस जमाने के रोशनी से जब बाहर आएगा
तब तेरे दिल में उजाला सा नजर आएगा

खुशी छा जाती है नजरों पे कफन बनकर
दर्दे तन्हाई में तू जिंदगी को समझ पाएगा


इश्क के चिरागों को गजलों से जलाते चलो
उम्र तो इस तरह से भी मेरा कट जाएगा

क्या लेकर जाना है हमें इस दुनिया से
जब मेरा जिस्म ही मुझे छोड़ चला जाएगा

आहें दिल की आरजू हैं, दर्द ही तमन्ना है

आहें दिल की आरजू हैं, दर्द ही तमन्ना है
इश्क ही गुनाह मेरा, फिर सजा तो सहना है

मुश्किलों के इस दौर में दूर है मेरी दिलरुबा
ऐसी तन्हाई में मेरे मुश्किलों को बढ़ना है


तेरी आंखों के दरवाजे खुलते हैं बस मेरे लिए
लेकिन तेरे आशियां में गैरों को ही रहना है

लड़ जाऊंगा मैं दुनिया से लेकिन तू रुसवा होगी
दाग न तुझपे लगने देंगे, खुद से ही बस लड़ना है

खिलके गुलाब की तरह मुरझा कर गिर गया

जाते-जाते वो मेरे खूँ में जहर भर गया
उसकी याद में जीके मैं आठों पहर मर गया

आशना के चार दिन ऐसे तज़रबे दे गए
खिलके गुलाब की तरह मुरझाकर गिर गया

उनकी तरफ बढ़ाया था बेखुदी में दो कदम
होश आया तो लगा कि खुद से दगा कर गया

किस दिल में मिलता है इस जहान में वफा
इसकी तलाश में भला क्यूँ किसी के घर गया

ना जाने आज चाँद भी कहाँ खो गया

वो अंजुमन की आग में लिपटे हुए तारे
आँसू के चिरागों से सुलगते नज़ारे
आसमान की नज़र में अटके हुए सारे

ना जाने आज चाँद भी कहाँ खो गया
फलक का अँधेरा भी दरिया पे सो गया
रोता है हर शै कि आज क्या हो गया

शज़र के शाखों पे नशेमन की ख़ामोशी
फैली है पंछियों में ये कैसी उदासी
क्यूँ लग रही हर चीज़ आज जुदा सी

बजती है सन्नाटे में झिंगुरों की झनक
या टूट रही है तेरी चूड़ियों की खनक
आती है आहटों से जख्मों की झलक

ये रात कब बीतेगी मेरी जवानी की
कब ख़त्म होगी कड़ियाँ मेरी कहानी की
कब लाएगी तू खुशियाँ जिंदगानी की

मेरी मुंतज़िर निग़ाहों को हुस्न का रूप मिला

जख़्म दर जख़्म हम पाते गए कुछ न कुछ
हर दर्द हर गम पे गाते गए कुछ न कुछ
जो मुझे एक पल की खुशी दे न सके
वो हर पल सितम ढ़ाते गए कुछ न कुछ

हर मंजिल पे एक किनारा दिखता था मगर
उसके बाद एक रोता समंदर भी रहता था
हम नहीं गए उस किनारे पे दिल के लिए
जहाँ आँसू न थे पहले से कुछ न कुछ

मेरी मुंतज़िर निग़ाहों को हुस्न का रूप मिला
मेरे बेकरार रूह को दर्द का धूप मिला
चाँद तो बस दूर से ही नूर को बिखराती रही
मगर देती रही बुझते चिराग को कुछ न कुछ

हमें अफसोस नहीं कि तुझे देखा नहीं जी भर के
तेरी तस्वीर तो तेरे आने से पहले सीने में थी
तू आके बस दरस दिखा के गुजर गई
अब उम्रभर तेरे बारे सोचना है कुछ न कुछ

हो सकता है तेरे दिल में मेरे खातिर जगह न हो

हो सकता है तेरे दिल में मेरे खातिर जगह न हो
हो सकता है इसके पीछे, किसी तरह की वजह न हो

लो गुनाह कुबूल किया, फिर आशिक कहता है कि
दुनिया तेरी कचहरी में मेरे इश्क पे जिरह न हो

रात में शाम का बादल ही चांद का कातिल बनता है
सोचता हूं कि तेरे बिन अब इन रातों की सुबह न हो
तू है गैर के घर में और मैं हो गया जग से पराया
इश्क की दुनिया में किसी का अंजाम मेरी तरह न हो

Tuesday, February 2, 2016

दुनिया में तेरा हुस्न मेरी जां सलामत रहे

दुनिया में तेरा हुस्न मेरी जां सलामत रहे
सदियों तलक जमीं पे तेरी कयामत रहे

और भी दुनिया में आएंगे आशिक कितने

उनकी आंखों में तुमको देखने की चाहत रहे

इश्क के तमाशे में हमेशा तेरे किरदार से

दर्द और खामोशी के अश्कों की शिकायत रहे

खुमारियों के चंद लम्हों का है तेरा सुरूर

उसमें डूबकर मरने से दिल को राहत रहे

चाहतों में - Hume Yaad Rakhna Yeh Mere Dilbar

यू नजर से बात की और दिल चुरा गए,
अन्धेरो के साए मे धडकन सुना गए,
हम तो समझते थे अजनबी आपको,
आप तो हमको अपना बना गए।

देख मेरी आँखों में ख्वाब किसके हैं,
दिल में मेरे सुलगते तूफ़ान किसके हैं,
नहीं गुज़रा कोई आज तक इस रास्ते से,
फिर ये क़दमों के निशान किसके हैं।

हर शाम किसी के लिए सुहानी नही होती,
हर प्यार के पीछे कोई कहानी नही होती,
कुछ तो असर होता है दो आत्मा के मेल का,
वरना गोरी राधा, सावले कान्हा की दीवानी न होती।

दूर जाने से पहले - Sad Shayari in Love

दूर जाने से पहले, मेरी जिंदगानी ले जा,
तू मेरे नादाँ दिल से, थोड़ी नादानी ले जा,

कैसे बताओगे सबको, जुदाई का सबब तुम,
तेरे हक़ में लिखी है जो, वो कहानी ले जा,

तेरे खतों के साथ है, कुछ सूखे हुये फूल भी,
तू मुझसे नाकाम मोहब्बत, ये निशानी ले जा,

तुझे मुश्किल होगी, जब हुस्न ढलने लगेगा,
ठहर जरा, मुझसे मेरी बर्बाद ये जवानी ले जा,

तेरे उस बंजर शहर में, सूखा भी बहुत होगा,
आ के मेरी आँखों से बहता, ये पानी ले जा.

दो मशहूर शायरों के अपने-अपने अंदाज

दो मशहूर शायरों के अपने-अपने अंदाज

पहले मिर्ज़ा गालिब

उड़ने दे इन परिंदों को आज़ाद फिजां में ‘गालिब’

जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएँगे

शायर इकबाल का उत्तर

ना रख उम्मीद-ए-वफ़ा किसी परिंदे से 

जब पर निकल आते हैं

तो अपने भी आशियाना भूल जाते हैं