Thursday, March 17, 2016

कभी वो मेरी आँखों में सपने बनकर रहा करती थी

अजब होती है इश्क की दास्ताँ,
बिछड़कर भी प्रेमी कब जुदा होते हैं

कभी वो मेरी आँखों में सपने बनकर रहा करती थी,
अब भी है वो साथ मेरे, फर्क बस इतना है
अब आँसू बनकर बहा करती है.



उतर के देख मेरी चाहत की गहराई में,
सोचना मेरे बारे में रात की तनहाई में,

अगर हो जाए मेरी चाहत का एहसास तुम्हे,
तो मिलेगा मेरा अक्स तुम्हें अपनी ही परछाई में.

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