Friday, December 2, 2016

ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती

हसीनों ने हसीन बन कर गुनाह किया,
औरों को तो क्या हमको भी तबाह किया,

पेश किया जब ग़ज़लों में हमने उनकी बेवफाई को,
औरों ने तो क्या उन्होंने भी वाह - वाह किया.


ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती,
भंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देता,

वो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगी,
सितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता.

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