Friday, December 2, 2016

ना जाने क्या बात थी उनमे और हममे

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा,

पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा.


सारी उम्र आंखो मे एक सपना याद रहा,
सदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहा,

ना जाने क्या बात थी उनमे और हममे,
सारी मेहफिल भुल गये बस वह चेहरा याद रहा.

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