Friday, December 2, 2016

ना जाने कब वो हसीन रात होगी

रोज साहिल से समंदर का नज़ारा न करो,
अपनी सूरत को शबो-रोज निहारा न करो,

आओ देखो मेरी नज़रों में उतर कर ख़ुद को,
आइना हूँ मैं तेरा मुझसे किनारा न करो.


तेरे हर ग़म को अपनी रूह में उतार लूँ,
ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ,

मुलाक़ात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी,
सारी उम्र बस एक मुलाक़ात में गुज़ार लूँ.

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