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Friday, May 5, 2017

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।

होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे।



मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।

ईमान मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे।

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।

Wednesday, December 18, 2013

दर्द भरी शायरी

शीशे के खिलौनों से खेला नहीं जाता

रेतों के घरौंदों को तोड़ा नहीं जाता


आहिस्ते से आती हवा को कैसे कहूँ मैं


कि बेशरमी से बदन को छुआ नहीं जाता


जलते हुए दिलों की निशानी जो दे गया


कुछ ऐसे चिरागों को बुझाया नहीं जाता


बनती हुई तस्वीर तेरी चाँद बन गई


अब मेरे तसव्वुर का उजाला नहीं जाता