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Saturday, August 5, 2017

यादों के बन्द कमरे में, ज़िन्दगी सिसकती है बहुत

जाने क्यूँ आजकल, तुम्हारी कमी अखरती है बहुत,
यादों के बन्द कमरे में, ज़िन्दगी सिसकती है बहुत.

पनपने नहीं देता कभी, बेदर्द सी उस ख़्वाहिश को,
महसूस तुम्हें जो करने की, कोशिश करती है बहुत.


दावे करती हैं ज़िन्दगी, जो हर दिन तुझे भुलाने के,
किसी न किसी बहाने से, याद तुझे करती है बहुत.

आहट से भी चौंक जाए, मुस्कराने से ही कतराए,
मालूम नहीं क्यों ज़िन्दगी, जीने से डरती है बहुत.

Thursday, November 17, 2016

अपने महबूब को खुदा कर दिया

वो हमें भूल भी जायें तो कोई गम नहीं,
जाना उनका जान जाने से भी कम नहीं,


जाने कैसे ज़ख़्म दिए हैं उसने इस दिल को,
कि हर कोई कहता है कि इस दर्द की कोई मरहम नहीं.




अपना होगा तो सता के मरहम देगा,
जालिम होगा अपना बना के जख्म देगा,

समय से पहले पकती नहीं फसल,
अरे बहुत बरबादियां अभी मौसम देगा.