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Wednesday, December 12, 2018

वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ । 
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ । 

जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का, 
कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ । 

कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई, 
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ । 


मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया, 
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ । 

वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी, 
मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ । 

वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे, 
किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ ।

Sunday, October 14, 2018

जब मुझसे मोहबत ही नही तो रोकते क्यू हो.?

जब मुझसे मोहबत ही नही  तो रोकते क्यू हो.?
तन्हाई मे मेरे बारे मे सोचते क्यू हो.?
जब मंज़िले ही जुड़ा ह तो जाने दो मुझे,
लोट के कब आओगे यह पुचहते क्यूँ हो….??

ज़ख़्म लगा कर मेरे दिल पे बड़ी सादगी से,
मेरे ज़ख़्मी दिल का हाल पुचहते क्यूँ हो….?
ठुकरा कर मेरी मोहब्बत को एस तरह,
पलट पलट कर प्यार से देखते क्यूँ हो……??

Sunday, April 15, 2018

अबके बरस भी वो नहीं आये बहार में

अबके बरस भी वो नहीं आये बहार में,
गुज़रेगा और एक बरस इंतज़ार में.

ये आग इश्क़ की है बुझाने से क्या बुझे,
दिल तेरे बस में है ना मेरे इख़्तियार में.


है टूटे दिल में तेरी मुहब्बत, तेरा ख़याल,
कुछ रंग है बहार के उजड़ी बहार में.

आँसू नहीं हैं आँख में लेकिन तेरे बग़ैर,
तूफ़ान छुपे हुए हैं दिल-ए-बेक़रार में.

Saturday, March 10, 2018

काँटों से दामन उलझाना मेरी आदत है

काँटों से दामन उलझाना मेरी आदत है,
दिल मे पराया दर्द बसाना मेरी आदत है.

मेरा गला गर कट जाए तो तुझ पर क्या इल्ज़ाम,
हर क़ातिल को गले लगाना मेरी आदत है.


जिन को दुनिया ने ठुकराया जिन से हैं सब दूर,
ऐसे लोगों को अपनाना मेरी आदत है.

सब की बातें सुन लेता हूँ मैं चुपचाप मगर,
अपने दिल की करते जाना मेरी आदत है.

Saturday, August 5, 2017

जख्म बन जानेँ की आदत है उसकी

तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान,
दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे.

ख़त लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में,
उसको पढते रहे और जलाते रहे.


जख्म बन जानेँ की आदत है उसकी
रुला कर मुस्कुरानेँ की आदत है उसकी.

मिलेगेँ कभी तोँ खुब रूलायेँ उसको,
सुना है रोतेँ हूऐ लिपट जाने की आदत है उसकी.

Thursday, March 30, 2017

मेरे बहते आंसुओ की कोई कदर नहीं

मेरे बहते आंसुओ की कोई कदर नहीं
क्यों इस तरह नजरो से गिरा देते हो

क्या यही मौसम पसंद है तुम्हे जो,
सर्द रातो में आंसुओ की बारिश करवा देते हो



आखिर क्यों मुझे तुम इतना दर्द देते हो
जब भी मन में आये क्यों रुला देते हो

निगाहें बेरुखी हैं और तीखे हैं लफ्ज़
ये कैसी मोहब्बत हैं जो तुम मुझसे करते हो