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Thursday, November 1, 2018

मेरी ये जिद नहीं मेरे गले का हार हो जाओ

मेरी ये जिद नहीं मेरे गले का हार हो जाओ, 
अकेला छोड़ देना तुम जहाँ बेज़ार हो जाओ। 

बहुत जल्दी समझ में आने लगते हो ज़माने को, 
बहुत आसान हो थोड़े बहुत दुश्वार हो जाओ। 


मुलाकातों के वफ़ा होना इस लिए जरूरी है, 
कि तुम एक दिन जुदाई के लिए तैयार हो जाओ।



मैं चिलचिलाती धूप के सहरा से आया हूँ, 
तुम बस ऐसा करो साया-ए-दीवार हो जाओ। 


तुम्हारे पास देने के लिए झूठी तसल्ली हो, 
न आये ऐसा दिन तुम इस कदर नादार हो जाओ। 

तुम्हें मालूम हो जायेगा कि कैसे रंज सहते हैं, 
मेरी इतनी दुआ है कि तुम फनकार हो जाओ।

Thursday, March 17, 2016

कभी वो मेरी आँखों में सपने बनकर रहा करती थी

अजब होती है इश्क की दास्ताँ,
बिछड़कर भी प्रेमी कब जुदा होते हैं

कभी वो मेरी आँखों में सपने बनकर रहा करती थी,
अब भी है वो साथ मेरे, फर्क बस इतना है
अब आँसू बनकर बहा करती है.



उतर के देख मेरी चाहत की गहराई में,
सोचना मेरे बारे में रात की तनहाई में,

अगर हो जाए मेरी चाहत का एहसास तुम्हे,
तो मिलेगा मेरा अक्स तुम्हें अपनी ही परछाई में.

Sunday, August 23, 2015

कुछ भी नहीं मिलेगा मुझे तेरी दुआ से

किसको खुदा कहेंगे कोई मेरा खुदा नहीं
है कोई भी खुदा तो वो मुझसे जुदा नहीं
शायर तो मुहब्बत के सिवा कुछ नहीं चाहे
लेकिन जमाने के किसी दिल में वफा नहीं
कुछ भी नहीं मिलेगा मुझे तेरी दुआ से
लगती है बेकसों को किसी की दुआ नहीं
वो हंसके बुझा देती है मेरे सीने में लगी आग
आंसुओं से कभी दामन उसका जला नहीं

रातो के ख्वाबो का इंतजार क्या करू

जिन्हीने बदली थी हमारे ख्वाइशों की जिंदगी..
आज वहो बदले बदले नज़र आते है..

उड़ गए उन परिंदों का मलाल क्या करे..
जब अपने भी औरो की छत पर नज़र आते है..

रातो के ख्वाबो का इंतजार क्या करू..
जब दिन मै भी डरावने सपने आत्ते है..

एक अरसा बीत गया..खुलकर मुस्कुराए हुए..
एक अरसा बीत गया..गीत कोई गाए हुए..

मेरी नज़रों को तेरा इन्तज़ार आज भी है..
एक अरसा बीत गया..कोई रिश्ता नया बनाए हुए..

Thursday, May 28, 2015

मुझसे कुदरत की ख़ामोशियों की बात करो

दर्द ये क्या है इस दर्द पे ही बात करो
और कुछ भी नहीं बस आंसुओं की बात करो

न ये दुनिया, न ही रिश्ते, न ही बंधन की
इन हवाओं में उड़ते पंछियों की बात करो

राज़ तन्हाई की और बोलियां निगाहों की
मुझसे कुदरत की ख़ामोशियों की बात करो

मुझे समझा न सकोगे कभी दोस्त मेरे
सोचने की नहीं, अहसासों की बात करो

Wednesday, January 1, 2014

मुहब्बत के मुकद्दर में वो हसीं शाम कभी होती

मुहब्बत के मुकद्दर में वो हसीं शाम कभी होती

सोचता हूं ये जिंदगी तो उसके नाम कभी होती


जो फूल उसकी जुल्फों तक नहीं पहुंच सका


उसे तोड़ने को वो दिल से परेशान कभी होती


मुझे पत्थर समझकर जो हमेशा तराशती रही

उस खुदा से हमारी दुआ सलाम कभी होती


जिसको देखा किए हर शब उल्फत के आइने में

वह अक्स हमारे आशियां की मेहमान कभी होती




Wednesday, December 25, 2013

शीशे के खिलौनों से खेला नहीं जाता

शीशे के खिलौनों से खेला नहीं जाता

रेतों के घरौंदों को तोड़ा नहीं जाता

आहिस्ते से आती हवा को कैसे कहूँ मैं

कि बेशरमी से बदन को छुआ नहीं जाता

जलते हुए दिलों की निशानी जो दे गया

कुछ ऐसे चिरागों को बुझाया नहीं जाता

बनती हुई तस्वीर तेरी चाँद बन गई

अब मेरे तसव्वुर का उजाला नहीं जाता




Sunday, December 15, 2013

प्यार मोहब्बत की शायरी

तुझे देखे बिना कभी जी न सके,

तुझे सोचे बिना कभी लिख न सके.

मैं तो तेरे लिए चुनके लाया गुलाब,

सामने आई तुम, तुझे दे न सके.

मेरी नजरों में बस एक तमन्ना रही,

अपना दर्दे-जिगर हम दिखा न सके.

जांनिसारों में तुम हमें न रखो,

आज तक अपनी जां हम पा न सके.