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Friday, November 18, 2016
Sunday, August 23, 2015
कुछ भी नहीं मिलेगा मुझे तेरी दुआ से
किसको खुदा कहेंगे कोई मेरा खुदा नहीं
है कोई भी खुदा तो वो मुझसे जुदा नहीं
है कोई भी खुदा तो वो मुझसे जुदा नहीं
शायर तो मुहब्बत के सिवा कुछ नहीं चाहे
लेकिन जमाने के किसी दिल में वफा नहीं
लेकिन जमाने के किसी दिल में वफा नहीं
कुछ भी नहीं मिलेगा मुझे तेरी दुआ से
लगती है बेकसों को किसी की दुआ नहीं
लगती है बेकसों को किसी की दुआ नहीं
वो हंसके बुझा देती है मेरे सीने में लगी आग
आंसुओं से कभी दामन उसका जला नहीं
आंसुओं से कभी दामन उसका जला नहीं
तुम मेरे दर्द को मिटा दोगी एक दिन
अपने दिल के सनमखाने के हर जर्रे पे
आँसुओं से तेरे नाम लिखे हैं हमने
ये ख़ामोशी और दर्द के अफ़साने
कोरे कागज़ पे सजाए हैं हमने
ये जो पत्थर के बेदिल मकान हैं
इस दुनिया की गलियों के श्मशान हैं
तन्हाई के जिंदादिली के साये में
तुमको ख़यालों में बसाए हैं हमने
राहों के मुकद्दर में कई मुसाफिर हैं
पर मेरी पगडंडियों पे तू अकेली है
इस भीड़ भरी अंधेर नगरी में
तेरे नूर के माहताब जलाए हैं हमने
मेरी दीवानगी छलक न जाए आंखों से
हम हर फुगां को दिल में दबा लेते हैं
तुम मेरे दर्द को मिटा दोगी एक दिन
इसी उम्मीद में जख्म संभाले हैं हमने
Friday, April 17, 2015
वो रात दर्द और सितम की रात होगी
वो रात दर्द और सितम की रात होगी,
जिस रात रुखसत उनकी बारात होगी,
उठ जाता हु मैं ये सोचकर नींद से अक्सर,
के एक गैर की बाहों में मेरी सारी कायनात होगी.
इश्क़ सभी को जीना सीखा देता है,
वफ़ा के नाम पर मरना सीखा देता है.
जिस रात रुखसत उनकी बारात होगी,
उठ जाता हु मैं ये सोचकर नींद से अक्सर,
के एक गैर की बाहों में मेरी सारी कायनात होगी.
इश्क़ सभी को जीना सीखा देता है,
वफ़ा के नाम पर मरना सीखा देता है.
इश्क़ नही किया तो करके देखो,
ज़ालिम हर दर्द सहना सीखा देता है.
Saturday, September 27, 2014
Saturday, May 24, 2014
Wednesday, January 1, 2014
मुहब्बत के मुकद्दर में वो हसीं शाम कभी होती
मुहब्बत के मुकद्दर में वो हसीं शाम कभी होती
सोचता हूं ये जिंदगी तो उसके नाम कभी होती
जो फूल उसकी जुल्फों तक नहीं पहुंच सका
उसे तोड़ने को वो दिल से परेशान कभी होती
मुझे पत्थर समझकर जो हमेशा तराशती रही
उस खुदा से हमारी दुआ सलाम कभी होती
जिसको देखा किए हर शब उल्फत के आइने में
वह अक्स हमारे आशियां की मेहमान कभी होती
सोचता हूं ये जिंदगी तो उसके नाम कभी होती
जो फूल उसकी जुल्फों तक नहीं पहुंच सका
उसे तोड़ने को वो दिल से परेशान कभी होती
मुझे पत्थर समझकर जो हमेशा तराशती रही
उस खुदा से हमारी दुआ सलाम कभी होती
जिसको देखा किए हर शब उल्फत के आइने में
वह अक्स हमारे आशियां की मेहमान कभी होती
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