Tuesday, January 10, 2017
तुम्हारी याद में जब मेरा दिल रोता है
तुम्हारी याद आने पर आँसू टूट जाते है
उन्हें मैं हथेलियों पर समेट लेता हूँ
और जो अटक जाते हैं होंटों पर
तो मैं समझ लेता हूँ कि वो तुम हो.
सुबह-सुबह ठंडी हवा का झोंका
मुझे चुपके से आकर छूता है
और उसमें जो सबसे तेज़ झोंका हो
तो मैं समझ लेता हूँ कि वो तुम हो.
बिछड़ने के बाद से ही तुम्हारी याद आती है
तुम्हारी याद में जब मेरा दिल रोता है
रोते-रोते जो ज़ोर की हिचकी आती है
तो मैं समझ लेता हूँ कि वो तुम हो.
Friday, December 2, 2016
ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती
हसीनों ने हसीन बन कर गुनाह किया,
औरों को तो क्या हमको भी तबाह किया,
पेश किया जब ग़ज़लों में हमने उनकी बेवफाई को,
औरों ने तो क्या उन्होंने भी वाह - वाह किया.
ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती,
भंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देता,
वो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगी,
सितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता.
मुझे याद रखना तुम कहीं भुला ना देना
उनसे मिलने की जो सोचें अब वो ज़माना नहीं,
घर भी उनके कैसे जायें अब तो कोई बहाना नहीं,
मुझे याद रखना तुम कहीं भुला ना देना
माना कि बरसों से तेरी गली में आना-जाना नहीं.
एक मुद्दत से मेरे हाल से बेगाना है,
जाने ज़ालिम ने किस बात का बुरा माना है,
मैं जो ज़िद्दी हूँ तो वो भी कुछ कम नहीं,
मेरे कहने पर कहाँ उसने चले आना है.
Friday, November 18, 2016
कुछ इस तरह से वो मुस्कुराते हैं
कुछ इस तरह से वो मुस्कुराते हैं,
की परेशान लोग उन्हें देख खुश हो जाते हैं,
उनकी बातों का अजी क्या कहिये,
अलफ़ाज़ फूल बनकर होंठों से निकल आते हैं.
फ़िज़ाओं का मौसम जाने पर, बहारों का मौसम आया,
गुलाब से गुलाब का रंग तेरे गालों पे आया,
तेरे नैनों ने काली घटा का काजल लगाया,
जवानी जो तुम पर चढ़ी तो नशा मेरी आँखों में आया.
ना जाने कौन सा जादू है तेरी बाहों में
तेरी सादगी को निहारने का दिल करता है,
तमाम उम्र तेरे नाम करने को दिल करता है,
एक मुक़्क़मल शायरी है तू कुदरत की,
तुझे ग़ज़ल बना कर जुबां पर लाने को दिल करता है.
ना जाने कौन सा जादू है तेरी बाहों में,
शराब सा नशा है तेरी निगाहों में,
तेरी तलाश में तेरे मिलने की आस लिए,
दुआऐं मॉगता फिरता हूँ मैं दरगाहों में.
Thursday, November 17, 2016
Saturday, November 5, 2016
इन आँखों को दीदार तुम्हारा मिल गया
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें,
कुछ दर्द तो कलेजे से लगाने के लिए हैं,
यह इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें,
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए है.
मुझको फिर वही सुहाना नजारा मिल गया,
इन आँखों को दीदार तुम्हारा मिल गया,
अब किसी और की तमन्ना क्यूँ मैं करूँ,
जब मुझे तुम्हारी बाहों का सहारा मिल गया.
Friday, November 4, 2016
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम;
उस निगाह-ए-आशना को क्या समझ बैठे थे हम;
रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गये;
वाह री ग़फ़्लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम;
होश की तौफ़ीक़ भी कब अहल-ए-दिल को हो सकी;
इश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हम;
बेनियाज़ी को तेरी पाया सरासर सोज़-ओ-दर्द;
तुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हम;
भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती;
उस को भी अपनी तबीयत का समझ बैठे थे हम;
हुस्न को इक हुस्न की समझे नहीं और ऐ 'फ़िराक़';
मेहरबाँ नामेहरबाँ क्या क्या समझ बैठे थे हम।
Friday, October 28, 2016
वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था
किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ
सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ
वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ
ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ
सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ
वो भी क्या दिन थे की हर वहम यकीं होता था
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ
ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ
हम मुसाफिर सफ़र पे ही चलते रहे
वक़्त बदल गया पर बदली सिर्फ कहानी हे.
साथ मेरे ये खूबसूरत लम्हों की यादे पुरानी हे,
मत लगाओ मेरे ये दर्द भरे ज़ख्मो पे मलम,
मेरे पास सिर्फ उनकी बस यही एक निसानी हे.
वो सूरज की तरह आग उगलते रहे,
हम मुसाफिर सफ़र पे ही चलते रहे,
वो बीते वक़्त थे, उन्हें आना न था,
हम सारी रात करवट बदलते रहे.
प्यार की कली सब के लिए खिलती नहीं,
चाह कर भी हरेक एक चीज मिलती नहीं,
सच्चा प्यार किस्मत से मिलता है,
पर हर एक को ऐसी किस्मत मिलती नहीं.
आँख तो प्यार में दिल की ज़ुबान होती है,
सच्ची चाहत तो सदा बे-ज़ुबान होती है,
प्यार में दर्द भी मिले तो क्या घबराना,
सुना है दर्द से ही चाहत और जवान होती है.
तुम मेरी जिन्दगी मेरी जीने कि वजह बन जाओ
मेरी एक खवाहिश है जो तुम हों,
मेरी एक चाहत है जो तुम हों,
एक ही मेरी दुआ एक ही मेरी फरियाद
बस एक ही मेरी मोहब्बत है जो तुम हों.
मेरी चाहते बढने लगी है,
मुझे तेरी जरूरत होने लगी है,
बस बाहों में आ जाओ मेरी
मुझे तुम से मोहब्बत होने लगी है.
तुम मेरी खुशी बन जाओ,
तुज मेरी हँसी बन जाओ,
हमारी तो चाहत ही यही है
तुम मेरी जिन्दगी मेरी जीने कि वजह बन जाओ.
तुझे सीने से लगाओं कैसे,
तुझे दिल में बसाओं कैसे,
मेरी हर साँस पर बस तेरा ही नाम है
तुझे ये बताओं तो बताओं कैसे.
मेरी एक चाहत है जो तुम हों,
एक ही मेरी दुआ एक ही मेरी फरियाद
बस एक ही मेरी मोहब्बत है जो तुम हों.
मेरी चाहते बढने लगी है,
मुझे तेरी जरूरत होने लगी है,
बस बाहों में आ जाओ मेरी
मुझे तुम से मोहब्बत होने लगी है.
तुम मेरी खुशी बन जाओ,
तुज मेरी हँसी बन जाओ,
हमारी तो चाहत ही यही है
तुम मेरी जिन्दगी मेरी जीने कि वजह बन जाओ.
तुझे सीने से लगाओं कैसे,
तुझे दिल में बसाओं कैसे,
मेरी हर साँस पर बस तेरा ही नाम है
तुझे ये बताओं तो बताओं कैसे.
Tuesday, October 25, 2016
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है;
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है;
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से;
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है.
हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं;
न जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता है;
मैं धीरे धीरे उन का दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ;
वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है.
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है;
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से;
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है.
हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं;
न जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता है;
मैं धीरे धीरे उन का दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ;
वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है.
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ
किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ;
सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ.
वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था;
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ.
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे;
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ.
ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी;
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ.
सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ.
वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था;
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ.
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे;
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ.
ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी;
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ.
हसीनों ने हसीन बन कर गुनाह किया
हसीनों ने हसीन बन कर गुनाह किया;
औरों को तो क्या हमको भी तबाह किया;
पेश किया जब ग़ज़लों में हमने उनकी बेवफाई को;
औरों ने तो क्या उन्होंने भी वाह - वाह किया।
ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती;
भंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देता;
वो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगी;
सितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता।
तेरी रूह से रूह तक का रिश्ता है मेरा
पलकों में आँसु और दिल में दर्द सोया है,
हँसने वालो को क्या पता, रोने वाला किस कदर रोया है.
ये तो बस वही जान सकता है मेरी तनहाई का आलम,
जिसने जिन्दगी में किसी को पाने से पहले खोया है.
तेरी धड़कन ही ज़िंदगी का किस्सा है मेरा,
तू ज़िंदगी का एक अहम् हिस्सा है मेरा.
मेरी मोहब्बत तुझसे, सिर्फ़ लफ्जों की नहीं है,
तेरी रूह से रूह तक का रिश्ता है मेरा.
हँसने वालो को क्या पता, रोने वाला किस कदर रोया है.
ये तो बस वही जान सकता है मेरी तनहाई का आलम,
जिसने जिन्दगी में किसी को पाने से पहले खोया है.
तेरी धड़कन ही ज़िंदगी का किस्सा है मेरा,
तू ज़िंदगी का एक अहम् हिस्सा है मेरा.
मेरी मोहब्बत तुझसे, सिर्फ़ लफ्जों की नहीं है,
तेरी रूह से रूह तक का रिश्ता है मेरा.
Thursday, March 17, 2016
काश एक दिन ऐसा भी आये
ना जाने मुहब्बत में कितने अफसाने बन जाते है
शमां जिसको भी जलाती है वो परवाने बन जाते है,
कुछ हासिल करना ही इश्क कि मंजिल नही होती
दोस्ती से बड़ी कोई जागीर नहीं होती,
इससे अच्छी कोई तस्वीर नहीं होती,
एक प्यार का नाज़ुक सा धागा है दोस्ती,
फिर भी इससे पक्की कोई ज़ंजीर नहीं होती.
कभी वो मेरी आँखों में सपने बनकर रहा करती थी
अजब होती है इश्क की दास्ताँ,
बिछड़कर भी प्रेमी कब जुदा होते हैं
कभी वो मेरी आँखों में सपने बनकर रहा करती थी,
अब भी है वो साथ मेरे, फर्क बस इतना है
अब आँसू बनकर बहा करती है.
उतर के देख मेरी चाहत की गहराई में,
सोचना मेरे बारे में रात की तनहाई में,
अगर हो जाए मेरी चाहत का एहसास तुम्हे,
तो मिलेगा मेरा अक्स तुम्हें अपनी ही परछाई में.
Saturday, February 27, 2016
आहें दिल की आरजू हैं, दर्द ही तमन्ना है
आहें दिल की आरजू हैं, दर्द ही तमन्ना है
इश्क ही गुनाह मेरा, फिर सजा तो सहना है
मुश्किलों के इस दौर में दूर है मेरी दिलरुबा
तेरी आंखों के दरवाजे खुलते हैं बस मेरे लिए
लेकिन तेरे आशियां में गैरों को ही रहना है
लड़ जाऊंगा मैं दुनिया से लेकिन तू रुसवा होगी
दाग न तुझपे लगने देंगे, खुद से ही बस लड़ना है
खिलके गुलाब की तरह मुरझा कर गिर गया
जाते-जाते वो मेरे खूँ में जहर भर गया
उसकी याद में जीके मैं आठों पहर मर गया
आशना के चार दिन ऐसे तज़रबे दे गए
खिलके गुलाब की तरह मुरझाकर गिर गया
उनकी तरफ बढ़ाया था बेखुदी में दो कदम
होश आया तो लगा कि खुद से दगा कर गया
किस दिल में मिलता है इस जहान में वफा
इसकी तलाश में भला क्यूँ किसी के घर गया
ना जाने आज चाँद भी कहाँ खो गया
वो अंजुमन की आग में लिपटे हुए तारे
आँसू के चिरागों से सुलगते नज़ारे
आसमान की नज़र में अटके हुए सारे
ना जाने आज चाँद भी कहाँ खो गया
फलक का अँधेरा भी दरिया पे सो गया
रोता है हर शै कि आज क्या हो गया
शज़र के शाखों पे नशेमन की ख़ामोशी
फैली है पंछियों में ये कैसी उदासी
क्यूँ लग रही हर चीज़ आज जुदा सी
बजती है सन्नाटे में झिंगुरों की झनक
या टूट रही है तेरी चूड़ियों की खनक
आती है आहटों से जख्मों की झलक
ये रात कब बीतेगी मेरी जवानी की
कब ख़त्म होगी कड़ियाँ मेरी कहानी की
कब लाएगी तू खुशियाँ जिंदगानी की
मेरी मुंतज़िर निग़ाहों को हुस्न का रूप मिला
जख़्म दर जख़्म हम पाते गए कुछ न कुछ
हर दर्द हर गम पे गाते गए कुछ न कुछ
जो मुझे एक पल की खुशी दे न सके
वो हर पल सितम ढ़ाते गए कुछ न कुछ
हर मंजिल पे एक किनारा दिखता था मगर
उसके बाद एक रोता समंदर भी रहता था
हम नहीं गए उस किनारे पे दिल के लिए
जहाँ आँसू न थे पहले से कुछ न कुछ
मेरी मुंतज़िर निग़ाहों को हुस्न का रूप मिला
मेरे बेकरार रूह को दर्द का धूप मिला
चाँद तो बस दूर से ही नूर को बिखराती रही
मगर देती रही बुझते चिराग को कुछ न कुछ
हमें अफसोस नहीं कि तुझे देखा नहीं जी भर के
तेरी तस्वीर तो तेरे आने से पहले सीने में थी
तू आके बस दरस दिखा के गुजर गई
अब उम्रभर तेरे बारे सोचना है कुछ न कुछ
हो सकता है तेरे दिल में मेरे खातिर जगह न हो
हो सकता है तेरे दिल में मेरे खातिर जगह न हो
हो सकता है इसके पीछे, किसी तरह की वजह न हो
लो गुनाह कुबूल किया, फिर आशिक कहता है कि
दुनिया तेरी कचहरी में मेरे इश्क पे जिरह न हो
रात में शाम का बादल ही चांद का कातिल बनता है
सोचता हूं कि तेरे बिन अब इन रातों की सुबह न हो
तू है गैर के घर में और मैं हो गया जग से पराया
इश्क की दुनिया में किसी का अंजाम मेरी तरह न हो
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