Pages

Sunday, January 26, 2014

ये खामोश गजल मैं तुमको सुनाऊं कैसे

छलकते दर्द को होठों से बताऊं कैसे
ये खामोश गजल मैं तुमको सुनाऊं कैसे
दर्द गहरा हो तो आवाज़ खो जाती है
जख़्म से टीस उठे तो तुमको पुकारूं कैसे
मेरे जज़्बातों को मेरी इन आंखों में पढ़ो
अब तेरे सामने मैं आंसू भी बहाऊं कैसे
इश्क तुमसे किया, जमाने का सितम भी सहा
फिर भी तुम दूर हो हमसे, ये जताऊं कैसे

No comments:

Post a Comment