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अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ.
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अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ.
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Tuesday, October 25, 2016
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ
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किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ; सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ. वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था; अब हक़ी...
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