फरिश्ते भी अब कहाँ जख्मों का इलाज करते हैं,
बस तसल्ली देते है कि अब करते है, आज करते है।
उनसे बिछड़कर हमको तो मिल गयी सल्तनत-ए-गजल,
चलो नाम उनके हम भी जमाने के तख्तों-ताज करते है।
नए चेहरों में अब पहली सी कशिश कहाँ है बाकी,
अब तो बस पुरानी तस्वीर देखकर ही रियाज करते है।
और एक दिन दिल ए "मीर" ने आकर ख्वाब में हमसे ये कहा,
शायरी करो "रोशन" यहाँ बस शायरों का लिहाज करते है।