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Saturday, May 11, 2019

दुनिया यूँ ही नहीं लगी है उसे पाने की साज़िश में

बेहद ही लुत्फ़ होगा उस की ज़ुल्फ़ की बंदिश में
दुनिया यूँ ही नहीं लगी है उसे पाने की साज़िश में

बज़्म से छुपते-छुपाते आँखें देखती तो हैं उसे मगर
फसाद के फसाद हो जाएंगे इस ज़रा सी लग़्ज़िश में

उसके बदन की खुशबू में कोई तो तिलिस्म होगा ही
जो भीगना चाहता है ज़माना खुशबुओं की बारिश में


तेरे इश्क़ की कचहरियों में जो दिल हार जाते होंगे
फिर गुज़रती होगी उन की सारी उम्र ही गर्दिश में

"आकाश" यूँ ही नहीं पढ़ा करती मेरी ग़ज़लों को वो
कुछ तो बात होगी ही आखिर मेरी ही निगारिश में

Thursday, May 3, 2018

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई.

जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला
रस्में दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई.


दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा ना लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसीसे भी शिकायत ना हुई.

वक्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना ना मिला
दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुई.

Friday, March 30, 2018

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं,
ज़िंदा तो है जीने की अदा भूल गए हैं.

ख़ुशबू जो लुटाती है मसलते हैं उसी को,
एहसान का बदला यही मिलता है कली को,
एहसान तो लेते है, सिला भूल गए हैं.


करते है मोहब्बत का और एहसान का सौदा,
मतलब के लिए करते है ईमान का सौदा,
डर मौत का और ख़ौफ़-ऐ-ख़ुदा भूल गए हैं.

अब मोम पिघल कर कोई पत्थर नही होता,
अब कोई भी क़ुर्बान किसी पर नही होता,
यूँ भटकते है मंज़िल का पता भूल गए हैं.