Sunday, October 14, 2018

जो खुदा हर पल मेरे अहसासों में है

जो खुदा हर पल मेरे अहसासों में है
मेरी जां तू उसकी एक झलक तो नहीं.

तुमको अगर मैं अपने दिल में बसा लूं
ये काम जमाने में कोई गलत तो नहीं.


यूं सोचता रहूं और तुमसे कह न सकूं मैं
तो फिर रहोगी तुम हमसे अलग तो नहीं.

रातभर तेरी तस्वीर को देखता रहा लेकिन
झपकी एक बार भी मेरी पलक तो नहीं.

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं​;
​कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं​;

बेरुख़ी इससे बड़ी और भला क्या होगी​;
​एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं​;


रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने​;
​आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं​;

​​ सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने​;
​ वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं​;

​​ तुम तो शायर हो “क़तील” और वो इक आम सा शख़्स​;
​ उसने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं​।

अब जानेमन तू तो नही, शिकवा ए गम किससे कहें

अब जानेमन तू तो नही, शिकवा ए गम किससे कहें
या चुप रहें या रो पड़ें, किस्सा ए गम किससे कहें .


मुझे देखते ही हर निगाह पत्थर सी क्यों हो गयी

जिसे देख दिल हुआ उदास, हैं आँख नाम, किससे कहें.


ग़म के दरियाओं से मिलकर बना है यह सागर;
आप क्यों इसमें समाने की कोशिश करते हो;

कुछ नहीं है और इस जीवन में दर्द के सिवा;
आप क्यों इस ज़िंदगी में आने की कोशिश करते हो.

जब मुझसे मोहबत ही नही तो रोकते क्यू हो.?

जब मुझसे मोहबत ही नही  तो रोकते क्यू हो.?
तन्हाई मे मेरे बारे मे सोचते क्यू हो.?
जब मंज़िले ही जुड़ा ह तो जाने दो मुझे,
लोट के कब आओगे यह पुचहते क्यूँ हो….??

ज़ख़्म लगा कर मेरे दिल पे बड़ी सादगी से,
मेरे ज़ख़्मी दिल का हाल पुचहते क्यूँ हो….?
ठुकरा कर मेरी मोहब्बत को एस तरह,
पलट पलट कर प्यार से देखते क्यूँ हो……??

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।


गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।

हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है,
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।