Sunday, January 26, 2014
Dil Se Dil Tak Shayari Hindi
इश्क हटा दोगे सीने से, आखिर क्या रह जाएगा
तब तो तेरा जिस्म सलोना, बुत जैसा रह जाएगा
इस मुरादों की दुनिया में, मेरी चाहत कुछ भी नहीं
तू मुझे जो मिल न सकी, बस ये गम रह जाएगा
मेरी मानो तो धरती पर दो ही चीजें अपनी हैं
दिल का दर्द औ खारा आंसू, आखिर में रह जाएगा
शब से नाता है पुराना, सहर से कभी मिल न सके
दिन में दिल तो सो लेगा, रात में तन्हा रह जाएगा
तब तो तेरा जिस्म सलोना, बुत जैसा रह जाएगा
इस मुरादों की दुनिया में, मेरी चाहत कुछ भी नहीं
तू मुझे जो मिल न सकी, बस ये गम रह जाएगा
मेरी मानो तो धरती पर दो ही चीजें अपनी हैं
दिल का दर्द औ खारा आंसू, आखिर में रह जाएगा
शब से नाता है पुराना, सहर से कभी मिल न सके
दिन में दिल तो सो लेगा, रात में तन्हा रह जाएगा
तेरे बिन हम दिलजले कभी चैन नहीं पाएंगे
ये करवटों के सिलसिले कभी खत्म हो न पाएंगे
तेरे बिन हम दिलजले कभी चैन नहीं पाएंगे
तेरे बिन हम दिलजले कभी चैन नहीं पाएंगे
ऐ चांद फासला बढ़ा, इतनी कि तुम खो जाओ
तेरी हसीन चांदनी में उन्हें हम भूल नहीं पाएंगे
तेरी हसीन चांदनी में उन्हें हम भूल नहीं पाएंगे
बरसात के मौसम में शराबें तो पी ली हमने
क्या खबर थी भीगकर हम नशे में रह नहीं पाएंगे
क्या खबर थी भीगकर हम नशे में रह नहीं पाएंगे
आखिर किसी मुकाम पर मेरे मंजिल का निशां होगा
तेरी ऊंगली थामे बिना वहां तक चल नहीं पाएंगे
तेरी ऊंगली थामे बिना वहां तक चल नहीं पाएंगे
जबसे खबर हुई कि मेरा दिल आशना है
जबसे खबर हुई कि मेरा दिल आशना है
तबसे हम बेचैन हुए तेरे हर पल की खबर के लिए
कई दिन हो गए तुमसे मुहब्बत किए हुए
पर तरसते रहे अब तक तेरी इक नजर के लिए
तेरे साये से दूर हूं कि तेरी रुसवाई न हो
यही करता है हर आशिक अपने दिलबर के लिए
अश्क तो बह रहे हैं तन्हाई में जीते हुए
कोई मरहम तो अब बता दे तू खूने-जिगर के लिए
Wednesday, January 1, 2014
मुहब्बत के मुकद्दर में वो हसीं शाम कभी होती
मुहब्बत के मुकद्दर में वो हसीं शाम कभी होती
सोचता हूं ये जिंदगी तो उसके नाम कभी होती
जो फूल उसकी जुल्फों तक नहीं पहुंच सका
उसे तोड़ने को वो दिल से परेशान कभी होती
मुझे पत्थर समझकर जो हमेशा तराशती रही
उस खुदा से हमारी दुआ सलाम कभी होती
जिसको देखा किए हर शब उल्फत के आइने में
वह अक्स हमारे आशियां की मेहमान कभी होती
सोचता हूं ये जिंदगी तो उसके नाम कभी होती
जो फूल उसकी जुल्फों तक नहीं पहुंच सका
उसे तोड़ने को वो दिल से परेशान कभी होती
मुझे पत्थर समझकर जो हमेशा तराशती रही
उस खुदा से हमारी दुआ सलाम कभी होती
जिसको देखा किए हर शब उल्फत के आइने में
वह अक्स हमारे आशियां की मेहमान कभी होती
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