Tuesday, April 15, 2014

तुमसे वफा की आस भी रखूं भी मैं किस राह पर

तेरी दिल्लगी भी इश्क में मेरे दिल का गुल खिलाएगी

तेरी बेवफाई भी मुझसे एक हसीन गजल लिखवाएगी

तुमसे वफा की आस भी रखूं भी मैं किस राह पर

मालूम है तू एक दिन बड़ी दूर निकल जाएगी

सज़दे की वो जमीं है, जहां बैठकर मैं रोता हूं

तेरे दर्द के इन अश्कों में मेरी मिट्टी भी गल जाएगी

बरसों बरस भी धूप है, सूरज ही जिसका रूप है

इस जिंदगी की आग से तू चांद में बदल जाएगी


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