तेरी दिल्लगी भी इश्क में मेरे दिल का गुल खिलाएगी
तेरी बेवफाई भी मुझसे एक हसीन गजल लिखवाएगी
तुमसे वफा की आस भी रखूं भी मैं किस राह पर
मालूम है तू एक दिन बड़ी दूर निकल जाएगी
सज़दे की वो जमीं है, जहां बैठकर मैं रोता हूं
तेरे दर्द के इन अश्कों में मेरी मिट्टी भी गल जाएगी
बरसों बरस भी धूप है, सूरज ही जिसका रूप है
इस जिंदगी की आग से तू चांद में बदल जाएगी
No comments:
Post a Comment