हम कितनी दूर आ चुके, तुम कितनी दूर जा चुके
तुम मेरे दिल में आ चुके, हम तेरे दिल से जा चुके
अब गैर कोई छू ले मुझे तो मुझे भी ऐतराज नहीं
तेरे इश्क में हम जिस्म की हर गैरत को गंवा चुके
इस चांद को तुमसा कहूं तो बुरा लगेगा खुद मुझको
जबसे हमें तुम छोड़ गए, ये चिराग हम बुझा चुके
उसे कौन सा सफर कहूं जिसे हो नसीब न हमसफर
इस जिंदगी की राह को हम दर्द में डुबा चुके
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