जाते-जाते वो मेरे खूँ में जहर भर गया
उसकी याद में जीके मैं आठों पहर मर गया
आशना के चार दिन ऐसे तज़रबे दे गए
खिलके गुलाब की तरह मुरझाकर गिर गया
उनकी तरफ बढ़ाया था बेखुदी में दो कदम
होश आया तो लगा कि खुद से दगा कर गया
किस दिल में मिलता है इस जहान में वफा
इसकी तलाश में भला क्यूँ किसी के घर गया
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