Tuesday, October 25, 2016

हसीनों ने हसीन बन कर गुनाह किया

हसीनों ने हसीन बन कर गुनाह किया;
औरों को तो क्या हमको भी तबाह किया;

पेश किया जब ग़ज़लों में हमने उनकी बेवफाई को;
औरों ने तो क्या उन्होंने भी वाह - वाह किया।


ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती;
भंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देता;

वो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगी;
सितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता।

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