वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है;
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है;
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से;
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है.
हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं;
न जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता है;
मैं धीरे धीरे उन का दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ;
वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है.
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है;
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से;
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है.
हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं;
न जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता है;
मैं धीरे धीरे उन का दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ;
वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है.
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