इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्या,
हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने,
कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है,
पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने.
मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब,
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना,
मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब”,
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना.
हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने,
कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है,
पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने.
मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब,
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना,
मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब”,
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना.
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