Thursday, April 4, 2019

मैं ही वो शबनम थी जिसने चमन को सींचा

रंग बिखरे थे कितने मोहब्बत के थे वो, 
इक वो ही था जो कितना बेरंग निकला। 

मैं ही वो शबनम थी जिसने चमन को सींचा, 
मुझे ही छोड़ कर वो बारिश में भीगने निकला। 

मेरा वजूद है तो रोशन है तेरे घर के दिये, 
मैंने देखा था तू कितना बेरहम निकला। 


न जाने कहाँ हर्फे वफ़ा गम होके रह गई, 
सरे राह मेरी मोहब्बत का जनाज़ा निकला। 

दिल है खामोश उदासी फिजा में छाई है, 
मुद्दतें बीती बहारों का काफिला निकला। 

टूटे हुए ख्वाब और सिसकती सदाओं ने कहा, 
करने बर्बाद मुझे मेरे घर का रहनुमा निकला।

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