Saturday, May 11, 2019

दुनिया यूँ ही नहीं लगी है उसे पाने की साज़िश में

बेहद ही लुत्फ़ होगा उस की ज़ुल्फ़ की बंदिश में
दुनिया यूँ ही नहीं लगी है उसे पाने की साज़िश में

बज़्म से छुपते-छुपाते आँखें देखती तो हैं उसे मगर
फसाद के फसाद हो जाएंगे इस ज़रा सी लग़्ज़िश में

उसके बदन की खुशबू में कोई तो तिलिस्म होगा ही
जो भीगना चाहता है ज़माना खुशबुओं की बारिश में


तेरे इश्क़ की कचहरियों में जो दिल हार जाते होंगे
फिर गुज़रती होगी उन की सारी उम्र ही गर्दिश में

"आकाश" यूँ ही नहीं पढ़ा करती मेरी ग़ज़लों को वो
कुछ तो बात होगी ही आखिर मेरी ही निगारिश में

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