Tuesday, April 15, 2014
तुमसे वफा की आस भी रखूं भी मैं किस राह पर
तेरी दिल्लगी भी इश्क में मेरे दिल का गुल खिलाएगी
तेरी बेवफाई भी मुझसे एक हसीन गजल लिखवाएगी
तुमसे वफा की आस भी रखूं भी मैं किस राह पर
मालूम है तू एक दिन बड़ी दूर निकल जाएगी
सज़दे की वो जमीं है, जहां बैठकर मैं रोता हूं
तेरे दर्द के इन अश्कों में मेरी मिट्टी भी गल जाएगी
बरसों बरस भी धूप है, सूरज ही जिसका रूप है
इस जिंदगी की आग से तू चांद में बदल जाएगी
मुझे दिल से जो भुला दिया, तो तूने क्या बुरा किया
मुझे दिल से जो भुला दिया, तो तूने क्या बुरा किया
कांटे का दामन छोड़ कर, जो भी किया अच्छा किया
आवारगी की राह पे चलके मुझे मंजिल मिली
जिसने मुझे बेघर किया उसने भी कुछ भला किया
जिनके घरों में आंसू थे वहीं पे मुझे पानी मिला
इस शहर में मेरी प्यास ने कुछ ऐसा तज़रबा किया
ऐ दिल बता तुझे क्या मिला मेरा दाग से खेलकर
तूने दर्द से सौदा किया, अपनी गजल बेचा किया
कांटे का दामन छोड़ कर, जो भी किया अच्छा किया
आवारगी की राह पे चलके मुझे मंजिल मिली
जिसने मुझे बेघर किया उसने भी कुछ भला किया
जिनके घरों में आंसू थे वहीं पे मुझे पानी मिला
इस शहर में मेरी प्यास ने कुछ ऐसा तज़रबा किया
ऐ दिल बता तुझे क्या मिला मेरा दाग से खेलकर
तूने दर्द से सौदा किया, अपनी गजल बेचा किया
सूनी सेज पे रोती रह गई लेकिन तुमको खबर नहीं
सूनी सेज पे रोती रह गई लेकिन तुमको खबर नहीं
घिर आए सावन के बादल लेकिन तुमको खबर नहीं
फूल की सारी बगिया उजड़ी, माला टूटी, गजरे टूटे
कांटों की एक दुनिया बस गई लेकिन तुमको खबर नहीं
आने की कोई सूरत नहीं है, कितना मैं इंतजार करूं
आस का आईना टूट गया, लेकिन तुमको खबर नहीं
जीवन में अब सांझ-सवेरे, ना सूरज, ना चांद रहा
सारे दीपक बुझ से गए हैं लेकिन तुमको खबर नहीं
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