आई थी शाम बेकरार, आकर चली गई
होना था बस इंतजार, होकर चली गई
साहिल से दूर एक लहर आती मुझे दिखी
आंखों से वो सागर पार, बहकर चली गई
आस्मा के सारे तारे टूटकर गिरते रहे
चांद जिनसे करके प्यार, बुझकर चली गई
दिल में दो रूहों का दर्द लेकर जी रहा
मुझपे अपना जां निसार दिलबर चली गई
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