शीशे के खिलौनों से खेला नहीं जाता
रेतों के घरौंदों को तोड़ा नहीं जाता
आहिस्ते से आती हवा को कैसे कहूँ मैं
कि बेशरमी से बदन को छुआ नहीं जाता
जलते हुए दिलों की निशानी जो दे गया
कुछ ऐसे चिरागों को बुझाया नहीं जाता
बनती हुई तस्वीर तेरी चाँद बन गई
अब मेरे तसव्वुर का उजाला नहीं जाता
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