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Wednesday, December 25, 2013
सांसें हैं जब तक ये आस है बाकी
ये दौरे-जवानी गुजर जाए शायद
या दौरे जुदाई में मर जाएं शायद
सांसें हैं जब तक ये आस है बाकी
अमावस में चंदा निकल आए शायद
पीते रहे हम मयकदे में जी भर
नशा उल्फत का उतर जाए शायद
लगाते हैं अपनी निगाहों पे पहरे
रातों में वो मेरे घर आएं शायद
2 comments:
Unknown
December 25, 2013 at 2:30 PM
very beautiful this blog, cong.......
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Irfan khan
April 30, 2018 at 2:37 PM
Super
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very beautiful this blog, cong.......
ReplyDeleteSuper
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