मेरे खातिर दुनिया की महफिल नहीं
वहाँ पे मैं नहीं, जहाँ पे दिल नहीं
इश्क सच्चा हो तो वो तमाशा क्यूँ बने
दर्द ऐसा नुमाइश के काबिल नहीं
आज की रात तू मेरे पहलू में नहीं
चाँद से आज कुछ भी हासिल नहीं
डूबकर जी गया हूँ मैं अपने अंदर
मैं जमाने की लाशों में शामिल नहीं
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