गिरके ना ये फिर संभल जाए, उल्फत में जान निकल जाए
रूह का दीपक तो जला, ये जिस्म चाहे पिघल जाए
मर्जी हो तेरी तो आ जाओ, मेरा आशियां ये बदल जाए
कश्ती समंदर में कैसे रूके, किनारे से जो फिसल जाए.
किसके सहारे जीना है, तन्हाई ही तमन्ना है
हम इस पार, तुम उस पार, बीच में नदी को बहना है
लम्हा दिन महीना बरस, दुख के किनारे मरना है
आधे-अधूरे जीवन पूरे, तेरे बिन अब रहना है.
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