मैं किसी की ख्वाहिशों का गुलाम नहीं
मेरी आजादी का लेना कभी इम्तहान नहीं
दिल भले ही मुहब्बत के लिए रोता है
मगर हमने लिया कभी तेरा अहसान नहीं
आग की लहरों में देखा कीए अपना चेहरा
आईऩों का किया घर में कभी इंतजाम नहीं
क्यूं नहीं आई खुशी तेरी शायरी में ‘राज’
तुम लोगों की तरह हंसे कभी सरेआम नहीं
No comments:
Post a Comment