दर्द से आह गई गूँज तन्हाई में
कोई सुनता नहीं आवाज तन्हाई में
डोर तो टूट गयी दो टुकड़े बाकी हैं
कौन जोड़ेगा दोनों को तन्हाई में
आँख तो लाल हुई फिर बेरंग बरसी
रंग आँसू ने भी बदले तन्हाई में
सारी परतें दिल में मेरे सलामत हैं
जख्म दर जख्म संभाले हैं तन्हाई में.
No comments:
Post a Comment