ये दिल किसी मुकाम पर ठहर नहीं सका
मीलों तलक चला मगर मंजिल न पा सका
दीवानगी में न जाने कल कहां पे रहूँगा
आवारगी में अपना घर भी न बना सका
सर पे कफन है और जलता हुआ दिल है
चाहा बहुत पर जिस्म को खुद न जला सका
तड़पती हुई लहरों को शायद नहीं मालूम
साहिल की प्यास को वो कभी न बुझा सका.
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