हम तो हर मौसम में गुनाह किया करते हैं
जिस्म की कैद से अश्कों को रिहा करते हैं
अपनी आजादी हमें जां से अधिक प्यारी है
इसलिए तो हम भटकते हुए जिया करते हैं
ये तजरबा है कि अपनों ने हमें जख्म दिया
अब तो तन्हाई में ये दर्द सहा करते हैं
रात होती है तो तुम याद बहुत आती हो
तेरे ही गम में हर रात जगा करते हैं
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