तन्हाई मेरे दिल में समाती चली गयी
किस्मत भी अपना खेल दिखाती चली गयी
महकती फ़िज़ा की खुशबू में जो देखा तुम को
बस याद उनकी आई और रुलाती चली गयी
शिकायत यह नहीं की , वो नाराज़ है हमसे
मुस्कुराने का हक़ भी छीना , इस बात का ग़म है
शिकायत यह नहीं की , दिल पे मेरे ज़ख्म दिया
कराहने का हक़ भी छीना , बस इस बात का ग़म है
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