Wednesday, May 15, 2019

इश्क़ की रस्म को इस तरह से निभाया हमने

जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने,
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने। 

तुझको रुसवा न किया खुद भी पशेमाँ न हुये, 
इश्क़ की रस्म को इस तरह से निभाया हमने।


कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं, 
ज़िन्दगी तुझ को तो बस ख्वाब में देखा हमने। 

ऐ अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना, 
उम्र का लम्बा सफ़र तय किया तन्हा हमने।

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