Wednesday, June 12, 2019

तुम आजकल बिन बोले मुझसे इस तरह बात करती हो

जिस तरह बे मौसम बारिश सूखे पत्तों पे आवाज़ करती है, 
तुम आजकल बिन बोले मुझसे इस तरह बात करती हो,

ना पता है तुमको मेरी परेशानी का ना ही मेरे दिल की हालत का,
मैं ऐसा क्यों हो रहा हूँ यह सवाल भी नहीं करती हो,

तुम्हें फ़िक्र रह गयी है अपनी और शायद सिर्फ़ अपनी,
क्यों नहीं इस रिश्ते से निकल कर पहली सी मुलाक़ात करती हो,


बहुत दिन हो गये मुझको दोपहर की नींद से जगाए,
क्यों नहीं मेरे कानो में आकर कोई शरारत वाली बात करती हो,

एक वक़्त था जब हम तुम थे सुख दुख के साथी,
क्यों नहीं तुम मुझको समझा कर एक नयी शुरुआत करती हो,

सूखे पत्तों की खरखराहट सी तुम मुझसे बात करती हो,
मैं बहुत उदास हो जाता हूँ जब तुम मुझसे इस तरह बात करती हो.

अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना

मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना, 
तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना। 

तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई, 
तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना। 

शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर चुन लो, 
अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना। 


तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते, 
पुरानी दोस्ती है, कि कुछ पहचान ले जाना। 

इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का, 
तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना। 

अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी, 
तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना।

जो बने कभी हमदर्द हमारे वो दर्द हमको देने लगे

जिसको दिल में बसाया हमने वो दूर हमसे रहने लगे, 
जिनको अपना माना हमने वो पराया हमको कहने लगे। 

जो बने कभी हमदर्द हमारे वो दर्द हमको देने लगे, 
जब लगी आग मेरे घर में तो पत्ते भी हवा देने लगे।


जिनसे की वफ़ा हमने वो बेवफा हमको कहने लगे, 
जिनको दिया मरहम हमने वो जखम हमको देने लगे। 

बचकर निकलता था काँटों से मगर फूल भी जखम देने लगे, 
जब लगी आग मेरे घर में तो पत्ते भी हवा देने लगे। 

बनायीं जिनकी तस्वीर हमने अब चेहरा वो बदलने लगे, 
जो रहते थे दिल में मेरे अब महलों में जाकर रहने लगे।

तेरा मुड़-मुड़ कर आना और जाना याद आया है

तेरी चाहत का वो मौसम सुहाना याद आया है, 
तेरा मुस्कुरा करके वो नजरें झुकाना याद आया है, 

जो सावन की काली घटा सी छाई रहती थी, 
उन जूलफों का चेहरे से हटना याद आया है, 

तुझे छेड़ने की खातिर जो अक्सर गुनगुनाता था, 
वो नगमा आशिकाना आज फिर याद आया है, 

मेरी साँसें उलझती थी तेरे कदमों की तेजी में, 
तेरा मुड़-मुड़ कर आना और जाना याद आया है,
 

तेरा लड़ना झगड़ना और मुझसे रूठ कर जाना, 
वो तेरा रूठ कर खुद मान जाना याद आया है, 

ना रस्ते हैं ना मंजिल है मिजाज भी है आवारा,
तेरे दिल में मेरे दिल का ठिकाना याद आया है, 

जिसके हर लफज में लिपटी हुई थी मेरी कई रातें, 
आज तेरा वो आखिरी खत हथेली पर जलाया है।

आज भी मुझे वो गुजरा जमाना याद आता है

वो हर रोज गुजरकर तेरी गली से जाना याद आता है,
खुदा ना खास्ता वो तेरा मिल जाना याद आता है। 

यूँ ही गुजर गया वो जमाना तुम्हारे इन्तजार का, 
आज भी मुझे वो गुजरा जमाना याद आता है। 

सुना है कि आज भी हमारी बातें करते है लोग, 
आज भी सबको वो अपना अफसाना याद आता है। 

तुम भी मुस्कुराती हो बेवजह अक्सर आईने में, 
सुना है तुमको भी अपना ये दीवाना याद आता है।


तब तुमसे मिला करते थे छुप छुप के हम, 
हर आहट से तेरा वो घबराना याद आता है। 

मैं शुक्रगुजार हूँ उन सर्द हवाओं का आज भी, 
वो ठंड में हम दोनों का लिपट जाना याद आता है। 

आज भी जब मैं मुस्कुराता हूँ कभी आईने में, 
मुझे देखकर तेरा वो मुस्कुराना याद आता है। 

बस यादें ही रह गयी और कुछ न बचा यहाँ, 
कभी तेरा हँसाना कभी सताना याद आता है।

Monday, May 27, 2019

नए चेहरों में अब पहली सी कशिश कहाँ है बाकी

फरिश्ते भी अब कहाँ जख्मों का इलाज करते हैं, 
बस तसल्ली देते है कि अब करते है, आज करते है। 

उनसे बिछड़कर हमको तो मिल गयी सल्तनत-ए-गजल, 
चलो नाम उनके हम भी जमाने के तख्तों-ताज करते है। 


नए चेहरों में अब पहली सी कशिश कहाँ है बाकी, 
अब तो बस पुरानी तस्वीर देखकर ही रियाज करते है। 

और एक दिन दिल ए "मीर" ने आकर ख्वाब में हमसे ये कहा, 
शायरी करो "रोशन" यहाँ बस शायरों का लिहाज करते है। 

Wednesday, May 15, 2019

इश्क़ की रस्म को इस तरह से निभाया हमने

जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने,
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने। 

तुझको रुसवा न किया खुद भी पशेमाँ न हुये, 
इश्क़ की रस्म को इस तरह से निभाया हमने।


कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं, 
ज़िन्दगी तुझ को तो बस ख्वाब में देखा हमने। 

ऐ अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना, 
उम्र का लम्बा सफ़र तय किया तन्हा हमने।

Saturday, May 11, 2019

दुनिया यूँ ही नहीं लगी है उसे पाने की साज़िश में

बेहद ही लुत्फ़ होगा उस की ज़ुल्फ़ की बंदिश में
दुनिया यूँ ही नहीं लगी है उसे पाने की साज़िश में

बज़्म से छुपते-छुपाते आँखें देखती तो हैं उसे मगर
फसाद के फसाद हो जाएंगे इस ज़रा सी लग़्ज़िश में

उसके बदन की खुशबू में कोई तो तिलिस्म होगा ही
जो भीगना चाहता है ज़माना खुशबुओं की बारिश में


तेरे इश्क़ की कचहरियों में जो दिल हार जाते होंगे
फिर गुज़रती होगी उन की सारी उम्र ही गर्दिश में

"आकाश" यूँ ही नहीं पढ़ा करती मेरी ग़ज़लों को वो
कुछ तो बात होगी ही आखिर मेरी ही निगारिश में

Thursday, April 11, 2019

मगर मेरी इन्हीं आँखों से सावन हार जाता है

ज़ीना मुहाल कर रखा है मेरी इन आँखों ने,
खुली हो तो तलाश तेरी बंद हो तो ख्वाब तेरे।

तुमने कहा था, आँख भर के देख लिया करो मुझे,
अब आँख भर आती है पर तुम नज़र नहीं आते।


मुझे मालूम है तुमने बहुत बरसातें देखी है,
मगर मेरी इन्हीं आँखों से सावन हार जाता है।

मैं उम्र भर जिनका न कोई दे सका जवाब,
वह इक नजर में, इतने सवालात कर गये।

Thursday, April 4, 2019

कोई आँखों से बातें करता हैं

नशीली आँखों से वो जब हमें देखते हैं,
हम घबराकर ऑंखें झुका लेते हैं,

कौन मिलाए उनकी आँखों से ऑंखें,
सुना है वो आँखों से अपना बना लेते है।


मोहब्बत के सपने दिखाते बहुत हैं,
वो रातों में हमको जगाते बहुत हैं,

मैं आँखों में काजल लगाऊं तो कैसे,
इन आँखों को लोग रुलाते बहुत हैं।

मैं ही वो शबनम थी जिसने चमन को सींचा

रंग बिखरे थे कितने मोहब्बत के थे वो, 
इक वो ही था जो कितना बेरंग निकला। 

मैं ही वो शबनम थी जिसने चमन को सींचा, 
मुझे ही छोड़ कर वो बारिश में भीगने निकला। 

मेरा वजूद है तो रोशन है तेरे घर के दिये, 
मैंने देखा था तू कितना बेरहम निकला। 


न जाने कहाँ हर्फे वफ़ा गम होके रह गई, 
सरे राह मेरी मोहब्बत का जनाज़ा निकला। 

दिल है खामोश उदासी फिजा में छाई है, 
मुद्दतें बीती बहारों का काफिला निकला। 

टूटे हुए ख्वाब और सिसकती सदाओं ने कहा, 
करने बर्बाद मुझे मेरे घर का रहनुमा निकला।

ये आँसू हैं इन्हें फूलों में शबनम की तरह रखना

उदासी का ये पत्थर आँसुओं से नम नहीं होता, 
हजारों जुगनुओं से भी अँधेरा कम नहीं होता। 

बिछड़ते वक़्त कोई बदगुमानी दिल में आ जाती, 
उसे भी ग़म नहीं होता मुझे भी ग़म नहीं होता। 



ये आँसू हैं इन्हें फूलों में शबनम की तरह रखना, 
ग़ज़ल एहसास है एहसास का मातम नहीं होता। 

बहुत से लोग दिल को इस तरह महफूज़ रखते हैं, 
कोई बारिश हो ये कागज़ जरा भी नम नहीं होता। 

कभी बरसात में शादाब बेलें सूख जाती है, 
हरे पेड़ों के गिरने का कोई मौसम नहीं होता।

शाम है बुझी बुझी वक्त है खफा खफा

शाम है बुझी बुझी वक्त है खफा खफा, 
कुछ हंसीं यादें हैं कुछ भरी सी आँखें हैं,

कह रही है मेरी ये तरसती नजर, 
अब तो आ जाइये अब न तड़पाइये. 


हम ठहर भी जायेंगे राह-ए-जिंदगी में 
तुम जो पास आने का इशारा करो, 

मुँह को फेरे हुए मेरे तकदीर सी, 
यूँ न चले जाइये अब तो आ जाइये.

Thursday, March 28, 2019

उसकी कुदरत देखता हूँ तेरी आँखें देखकर

निगाहों से कत्ल कर दे न हो तकलीफ दोनों को,
तुझे खंजर उठाने की मुझे गर्दन झुकाने की।

एक सी शोखी खुदा ने दी है हुस्नो-इश्क को,
फर्क बस इतना है वो आंखों में है ये दिल में है।

उसकी कुदरत देखता हूँ तेरी आँखें देखकर,
दो पियालों में भरी है कैसे लाखों मन शराब।



आँसुओं से जिनकी आँखे नम नही,
क्या समझते हो कि उन्हें कोई गम नही।

आँखे ही बना देती हैं फ़साना किसी का,
आँखे ही बना देती हैं दीवाना किसी का,

आँखे ही हँसाती हैं, आँखे ही रूलाती हैं,
आँखे ही बसा देती हैं घराना किसी का।

Saturday, March 16, 2019

तुम्हारी पलकों को मेरा इंतज़ार तो होने दो

ठीक से अभी आँखों को चार तो होने दो, 
मेरे इश्क़ का जुनून खुद पे सवार तो होने दो, 

दिल की गहराइयों में अब तलक तू कहाँ झाँकी है, 
मुकम्मल तो होने दो, अभी बाकी है। 


तुम्हारी पलकों को मेरा इंतज़ार तो होने दो, 
भीतर से हाँ बाहर से इंकार तो होने दो, 

मेरी तन्हाइयों ने बस तेरी ही राह ताकी है, 
मुकम्मल तो होने दो, अभी बाकी है। 

Wednesday, March 6, 2019

ज़िन्दगी में इतने ग़म थे जिनका अंदाज़ा न था

कौन सा वो ज़ख्मे-दिल था जो तर-ओ-ताज़ा न था, 
ज़िन्दगी में इतने ग़म थे जिनका अंदाज़ा न था, 

'अर्श' उनकी झील सी आँखों का उसमें क्या क़ुसूर, 
डूबने वालों को ही गहराई का अंदाज़ा न था।


उसे पाया नहीं लेकिन उसको खोना भी नहीं है,
उसके बगैर आंसू लेकर रोना भी नहीं है,

प्यार का रुख नफ़रत में कुछ इस कदर बदला,
अब सोचते है कि उसका कभी होना भी नहीं है।

Thursday, February 21, 2019

जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता

बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता,

वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैं,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता।


तेरी याद आई तो थोड़ा उदास हो जाऊंगा,
ज़िन्दगी से फिर एक बार निराश हो जाऊंगा,

कभी सोचा भी ना था ऐसा भी होगा,
तेरी ख़ुशी के लिए मै खुद को रूलाऊंगा।

Thursday, February 7, 2019

मुझसे दूर कर देगा वो बहला कर तुझको

मैंने गलती तो नहीं की बता कर तुझको, 
मेरे दिल के हालात दिखा कर तुझको। 

मैं भूखा ही रहा कल रात पर खुश था, 
अपने हिस्से का खाना खिला कर तुझको। 

दुनिया की बातों पे ग़ौर ना करना कभी, 
मुझसे दूर कर देगा वो बहला कर तुझको। 


मेरा दिल टूटेगा तो संभल जाऊँगा मैं, 
उसका टूटा तो जायेगा सुना कर तुझको। 

कोई है जो तुम्हें याद करता है बहुत, 
रातभर जागता है वो सुला कर तुझको। 

सोचो तो ज़रा कितनी सच्चाई है उसमें, 
गया भी वो तो सच सिखा कर तुझको। 

Tuesday, February 5, 2019

हमको तेरे ख्याल से कभी फुर्सत नहीं मिली

अजब मौसम है, मेरे हर कदम पे फूल रखता है, 
मोहब्बत में मोहब्बत का फरिश्ता साथ चलता है, 

मैं जब सो जाऊँ, इन आँखों पे अपने होंठ रख देना, 
यकीं आ जायेगा, पलकों तले भी दिल धड़कता है।


सब कुछ मिला सुकून की दौलत नहीं मिली, 
एक तुझको भूल जाने की मौहलत नहीं मिली, 

करने को बहुत काम थे अपने लिए मगर, 
हमको तेरे ख्याल से कभी फुर्सत नहीं मिली।

Monday, January 7, 2019

तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो

तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो,
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो.

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है, 
अंजाम का जो हो खतरा आग़ाज़ बदल डालो.


पुर-सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए,
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो.

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना,
तुम खेल वही खेलो अंदाज़ बदल डालो.

ऐ दोस्त करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है,
अगर चाहते हो मंज़िल तो परवाज़ बदल डालो.

इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे

इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे,
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे.

ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे,
ताबिंदा-ओ-पा_इन्दा हैं ज़र्रों के सहारे.


हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे,
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे.

हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम.
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे,

कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां.
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे,

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे,
जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे.

तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं,
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे.


बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे.

किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है,
हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे.

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुमकिन है,
हम तो उस दिन रो देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे.

Wednesday, December 12, 2018

दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं

दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं,
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं, 

बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली, 
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं,


एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं, 
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं,

जिस की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिस के लिये बदनाम हुए, 
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं,

वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था, 
उस आवारा दीवाने को 'ज़लिब'-'ज़लिब' कहते हैं.

वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ । 
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ । 

जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का, 
कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ । 

कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई, 
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ । 


मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया, 
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ । 

वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी, 
मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ । 

वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे, 
किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ ।

Thursday, November 1, 2018

मेरी ये जिद नहीं मेरे गले का हार हो जाओ

मेरी ये जिद नहीं मेरे गले का हार हो जाओ, 
अकेला छोड़ देना तुम जहाँ बेज़ार हो जाओ। 

बहुत जल्दी समझ में आने लगते हो ज़माने को, 
बहुत आसान हो थोड़े बहुत दुश्वार हो जाओ। 


मुलाकातों के वफ़ा होना इस लिए जरूरी है, 
कि तुम एक दिन जुदाई के लिए तैयार हो जाओ।



मैं चिलचिलाती धूप के सहरा से आया हूँ, 
तुम बस ऐसा करो साया-ए-दीवार हो जाओ। 


तुम्हारे पास देने के लिए झूठी तसल्ली हो, 
न आये ऐसा दिन तुम इस कदर नादार हो जाओ। 

तुम्हें मालूम हो जायेगा कि कैसे रंज सहते हैं, 
मेरी इतनी दुआ है कि तुम फनकार हो जाओ।

Sunday, October 14, 2018

जो खुदा हर पल मेरे अहसासों में है

जो खुदा हर पल मेरे अहसासों में है
मेरी जां तू उसकी एक झलक तो नहीं.

तुमको अगर मैं अपने दिल में बसा लूं
ये काम जमाने में कोई गलत तो नहीं.


यूं सोचता रहूं और तुमसे कह न सकूं मैं
तो फिर रहोगी तुम हमसे अलग तो नहीं.

रातभर तेरी तस्वीर को देखता रहा लेकिन
झपकी एक बार भी मेरी पलक तो नहीं.

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं​;
​कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं​;

बेरुख़ी इससे बड़ी और भला क्या होगी​;
​एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं​;


रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने​;
​आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं​;

​​ सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने​;
​ वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं​;

​​ तुम तो शायर हो “क़तील” और वो इक आम सा शख़्स​;
​ उसने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं​।

अब जानेमन तू तो नही, शिकवा ए गम किससे कहें

अब जानेमन तू तो नही, शिकवा ए गम किससे कहें
या चुप रहें या रो पड़ें, किस्सा ए गम किससे कहें .


मुझे देखते ही हर निगाह पत्थर सी क्यों हो गयी

जिसे देख दिल हुआ उदास, हैं आँख नाम, किससे कहें.


ग़म के दरियाओं से मिलकर बना है यह सागर;
आप क्यों इसमें समाने की कोशिश करते हो;

कुछ नहीं है और इस जीवन में दर्द के सिवा;
आप क्यों इस ज़िंदगी में आने की कोशिश करते हो.

जब मुझसे मोहबत ही नही तो रोकते क्यू हो.?

जब मुझसे मोहबत ही नही  तो रोकते क्यू हो.?
तन्हाई मे मेरे बारे मे सोचते क्यू हो.?
जब मंज़िले ही जुड़ा ह तो जाने दो मुझे,
लोट के कब आओगे यह पुचहते क्यूँ हो….??

ज़ख़्म लगा कर मेरे दिल पे बड़ी सादगी से,
मेरे ज़ख़्मी दिल का हाल पुचहते क्यूँ हो….?
ठुकरा कर मेरी मोहब्बत को एस तरह,
पलट पलट कर प्यार से देखते क्यूँ हो……??

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।


गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।

हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है,
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।

Friday, September 21, 2018

जियो इतना कि मरना मुश्किल हो जाए

यादों का इक झोंका आया हम से मिलने बरसों बाद,
पहले इतना रोये न थे जितना रोये बरसों बाद,

लम्हा लम्हा उजड़ा तो ही हम को एहसास हुआ,
पत्थर आये बरसों पहले शीशे टूटे बरसों बाद.


जियो इतना कि मरना मुश्किल हो जाए,
हंसो इतना कि रोना मुश्किल हो जाए,

किसी को पाना किस्मत की बात है,
पर चाहो इतना कि भुलाना मुश्किल हो जाए.

Monday, September 17, 2018

निगाहों में तेरे जलवों की कसरत ले के आया हूँ

यादों के धुएं में तेरी परछाई सी लगती है,
ख्वाबों में गूंजती शहनाई सी लगती है,

करीब हो तो अपनापन सा लगता है,
वर्ना सीने में हर सांस पराई सी लगती है.


हमारी ज़िंदगी हमारी साँस बन गये हो तुम,
खूबसूरत मोहब्बत का एहसास बन गये हो तुम,

हमे ज़रूरत है साँसों से ज्यादा तुम्हारी
क्योकि हमारी ज़िंदगी का एक हिस्सा खास बन गये हो तुम.

हम चाँद हैं तो तुम उसकी रोशनी हो

हम चाँद हैं तो तुम उसकी रोशनी हो,
हम फूल है तो तुम उसकी खुश्बू हो,

छोड़ेंगे ना कभी साथ तेरा क्योकि,
हम दोस्त है तो तुम दोस्ती की महक हो.


मेरे आंखों के ख्वाब दिल के अरमान हो तुम,

तुम से ही तो मैं हूं मेरी पहचान हो तुम,

मैं जमीन हूं अगर तो मेरे आसमान हो तुम
सच मानो मेरे लिए तो सारा जहां हो तुम.

Thursday, August 16, 2018

न बची जीने की चाहत, तो मौत का सामान ढूंढता है

न बची जीने की चाहत, तो मौत का सामान ढूंढता है,
क्या हुआ है दिल को, कि कफ़न की दुकान ढूंढता है.

समझाता हूँ बहुत कि जी ले आज के युग में भी थोड़ा,
मगर वो है कि बस, अपने अतीत के निशान ढूंढता है.


मैं अब कहाँ से लाऊं वो निश्छल प्यार वो अटूट रिश्ते ,
बस वो है कि हर सख़्श में, सत्य और ईमान ढूंढता है.

दिखाई पड़ते हैं उसे दुनिया में न जाने कितने हीअपने,
मगर वो तो हर किसी में, अपने लिए सम्मान ढूंढता है.

मूर्ख है “LOVE” न समझा आज के रिश्तों की हक़ीक़त,
अब रिश्तों से मुक्ति पाने को, आदमी इल्ज़ाम ढूंढता है.

Wednesday, July 11, 2018

इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्या

इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्या,
हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने,

कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है,
पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने.



मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब,
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना,

मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब”,
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना.

Tuesday, June 26, 2018

दर्द अगर काजल होता तो आँखों में लगा लेते

दर्द अगर काजल होता तो आँखों में लगा लेते;
दर्द अगर आँचल होता तो अपने सर पर सजा लेते;

दर्द अगर समुंदर होता तो दिल को हम साहिल बना लेते;
और दर्द अगर तेरी मोहब्बत होती तो उसको चाहत-ऐ ला हासिल बना लेते।



गर तेरी नज़र एक बार हम पर होती,
इश्क़ की खुमारी हमे भी महसोस होती,

कुछ तोड़ने का एहसास तुम्हे ज़रूर होता मगर,
दिल के टूटने पर कोई आवाज़ नही होती.